बाबा उमाकान्त जी महाराज ने बताया ईमानदार आदमी को रिश्वत के पैसे से बचने का तरीका

जयगुरुदेव

प्रेस नोट: 28.11.2022 उज्जैन (म.प्र.) 

क्या करने पर नर्क जाने का टिकट कटेगा, रिजर्वेशन कन्फर्म हो जाएगा

ऊपरी लोकों में जाने पर ही ताकत शक्ति आती है


निजधामवासी परम सन्त बाबा जयगुरुदेव जी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 29 जुलाई 2020 उज्जैन आश्रम में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि मन के अंदर निर्मलता रहे तो कहीं भी चले जाओ कोई दिक्कत नहीं। कहते हैं नभ्या और जिभ्या पर कंट्रोल है तो कहीं भी रहो, सुखी रहोगे, कोई शंका नहीं करेगा। और इसमें अगर कमी आ गई तो हर जगह ठोकर, मार खाओगे। उस समय पर परमार्थ तो कमा ही नहीं सकते हो बल्कि अपना नर्क का रिजर्वेशन करा लोगे, टिकट कटवा लोगे।

ईमानदार आदमी रिश्वत के पैसे से कैसे बचे? 

एक आदमी गुरु महाराज (बाबा जयगुरुदेव) के पास आया। कहा गुरु महाराज आपकी बड़ी दया हुई, हमको अच्छी नौकरी मिल गई। लेकिन ऐसे विभाग में नौकरी मिली जहां बगैर रिश्वत लिए काम ही नहीं चलता है। वहां पर तो रिश्वत ही रिश्वत है और अगर रिश्वत न लिया जाए तो निकाल बाहर कर दिया जाऊंगा तो क्या करूं? बोले बच्चा दिल दुखा कर मत लेना और काम पहले कर देना और बाद में अगर कोई दे जाये तो उसको ले लेना और जो तेरा खर्चा नौकरी का होगा, मेहनत का होगा, उसको तो खर्च करना बाकी गरीब गुरबों को खिला देना, कोई अच्छा काम उसमें से कर देना तो तेरे को दिक्कत नहीं आएगी। 

ऊपरी लोकों में जाने पर ही ताकत शक्ति आती है

महाराज जी ने 23 जुलाई 2020 सायं उज्जैन आश्रम में बताया कि चाहे कोई गुरु रहे हो और गुरुद्वारा जिनके नाम पर बना हो, चाहे कोई मुर्शिद ए कामिल पैगंबर सन्त रहे हो, उनके अंदर ताकत शक्ति तभी आई जब वह ऊपरी लोकों में गए और वहां से ताकत को लिया, अपनी जीवात्मा के अंदर उतारा। ऊपर में जिस तरह के महल, मंदिर, मकान है वह तो सभी जाति धर्म के लोगों ने एक ही तरह का देखा। तो जो देखा उसी का तो यहां वर्णन करेंगे। सब में गुम्बद, बुर्ज, दरवाजे, खिड़कियां है। आदमी के बनाए मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सबमें यह चीजें हैं।

नेक काम अपने मुंह से कहने पर बंट जाता है

महाराज जी ने 6 अगस्त 2020 को उज्जैन आश्रम पर बताया कि (बुल्ले शाह के) गुरु महाराज के मन में बात आई की परीक्षा लिया जाए और उसको खरा उतारा जाए, इसका नाम इतिहास में करा दिया जाए। तो बुलाए, पूछे बुल्ला तू कहां रहता है? अब उनको तो पूरा विश्वास था कि गुरु महाराज अंतर्यामी है, सब जानते हैं, अब इनको क्या बताना। लेकिन दोबारा फिर पूछे तो बताना भी जरूरी था। मुंह से पूछ रहे हैं कि कहां रहते हो तो बताना भी जरूरी था। तो कहा गुरु महाराज यहीं चरणों में पड़ा रहता हूं। पूछा अरे तो कुछ करते हो? अब क्या बताएं? कहा निज मुख निज गुण कहिये न काहू। अपने मुंह से अपनी तारीफ कभी नहीं करनी चाहिए। और अगर नेक, अच्छा काम करो उसको तो कहो ही नहीं। कह दोगे तो बंट जाएगा। अगर कोई पाप, गलती बन जाए और उसे कह दोगे तो उसको भी लोग बांट देंगे।

निंदा करने सुनने से अंदर का कान बंद हो जाता है

यदि पाप या गलती बन जाए और उसे कह दोगे तो उसको भी लोग बांट लेंगे। इसलिए कहा गया है कि निंदक अच्छा होता है। निंदक मेरा धोबिया मैल धोबे चित लाए। आप को शीतल करे और खुद नरके जाए। तो निंदा न तो सुनना चाहिए, न करना चाहिए। इसीलिए कोई किसी की निंदा करने लगता है तो बोल भी नहीं पाता है कि इनके सामने कैसे बोलें। साधक, अच्छा आदमी हट जाता है, निंदा बुराई न सुनता है न करता है। सुनने से भी यह कान दूषित होते हैं। अंदर का पर्दा गंदा हो जाता है और वही पर्दा जब साफ हो जाता है तब अंदर का कान खुल जाता है। नहीं तो निंदा कर्म को जमा करके अंदर के पर्दे को मोटा करके अंदर के कान को बंद कर देता है।

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